मंगलवार, मार्च 31, 2009
सरेआम ठगते है अनाधिकृत डॉक्टर
30 मार्च। बिना अनुज्ञापत्र के दवा बेचने वाले अनाधिकृत डॉक्टरों का जिले मंे जाल बिछा हुआ है। जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी तथा ड्रग इंस्पेक्टर प्रति माह लाखों की चांदी काट रहे है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले के विभिन्न गांवों में 148 बंगाली डॉक्टर निजी क्लिनिक चलाकर प्रेक्टिस कर रहे है। उनके पास किसी प्रकार का दवा देने व दवा बेचने का लाईसेंस नहीं है। विशवस्त सूत्र बताते है कि जिलेभर के अलग अलग गांवों में 148 तथाकथित डॉक्टर है, जिनके पास कोई लाइसेंस नहीं है फिर भी वे सरेआम दवाईयां बेच रहे है। इनके दवा बेचने का तरीका भी धोखाधड़ी वाला है। प्रथम तो प्रतिबंधित और जेनेरिक दवाइयां बेचते है। दूसरी बात है कि दवा पर मुद्रित मूल्य काट देते है और पांच रूपये वाली दवा साठ रूपये में बेच देजे है। बिना लाइसेंस के पे्रक्टिस करने वाले ये लोग दिनभर मरीजों की जांच करते रहते है और भारी भारी दवाइयां देने के साथ ही इंजेक्शन भी लगाते है। नियमानुसार सरकारी नौकर ‘अ’ श्रेणी का कम्पाउडर भी मरीज को देखकर दवा नहीं दे सकता है। जबकि ये तथाकथित डॉक्टर प्रतिदिन हजारों मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते है। इन पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है। इनसे दवाईयां लेते लेते मरीज का रोग अनियंत्रित हो जाता है। गलत दवाइयां साइड इफैक्ट करके असाध्य रोग पैदा कर देती है। उसके बाद विशेषज्ञ डॉक्टर तक पहुंचते है तो भी मरीज का सफल इलाज नहीं हो पाता है। इस प्रकार जिले के अनेक मरीज ठगे जा रहे है। जानकार सूत्रों का कहना है कि जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी इनकी प्रेक्टिस पर प्रतिबंध लगा सकते है, मगर उनसे मिलीभगत के कारण ऐसा नहीं किया जा रहा है। जिले का ड्रग इन्स्पेक्टर दवा बेचने पर प्रतिबंध लगा सकता है मगर वह भी मिलीभगत करके चेन की बंशी बजा रहा है और अवैध डॉक्टर मरीजों को लूट रहे है। उधर दवाओं के थोक विक्रेतागण भी चन्द लालच में आकर इन बिना लाईसेंस वालों को भी दवा बेच रहे है। वे भी अगर दवा नहीं दे तो अवैधता पर अंकुश लग सकता है।मगर नैतिक कर्तव्य किसी को याद नहीं आता है, केवल धन कमाने की दौड़ में सब शामिल है। जिला प्रशासन को चाहिए कि ऐसे लोगों का सर्वे करवाकर , उनके अवैध क्लिनिकों पर छापा मारकर गोरखधंधे को बंद करना चाहिए, ताकि आम नागरिक के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न हो। कहते है रोगी और भोगी ठगे जाते है।रोगी अपने शरीर को स्वस्थ रखना चाहता है। आम आदमी को वैध और अवैध का ज्ञान नहीं होता है। क्लिनिक खुला होने पर वह पूर्ण विश्वास के साथ डॉक्टर की बात मानता है। दवा गलत है। महंगी है। उसके अनुकूल है यह प्रतिकूल है। इस बात का ज्ञान उसकों नहीं होता है। आश्चर्य की बात है कि कि सी एम एण्ड एच ओ नागौर, ड्रग इन्स्पेक्टर नागौर तथा ड्रग कन्ट्रोलर अजमेर का नैतिक कर्तव्य बनता है कि वे इस खुल्ले अवैध खेल पर रोक लगावे । मगर उनका लालच आम जनता के लिए घातक बनता जा रहा है।
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