शनिवार, जुलाई 04, 2009

मध्यमावधि में पकने वाली व कम पानी चाहने वाली फसलों के चयन को प्राथमकिता दें- कृषि वैज्ञानिक

नागौर, 3 जुलाई। जिले में जिन स्थानों पर मानसून की वर्षा नहीं हुई है वहां विभिन्न खरीफ फसलों की बुवाई में देरी होने की सम्भावना को देखते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि वे कम या मध्यम अवधि में पकने वाली तथा कम पानी चाहने वाली फसलों के चयन को प्राथमिकता दें। कृषि विज्ञान केन्द्र अठियासन के प्रभारी ने बताया कि किसान भाई 15 जुलाई तक मध्यम या कम अवधि में पकने वाली किस्मों के तहत बाजरे की आर.एच.बी.-121, एच.एच.बी.-60, एच.एच.बी.-67 का चयन कर बुवाई करें। इसी प्रकार मूंग की आर.एम.जी.-़62, आर.एम.जी.-492, आर.एम.जी.-268 तथा मोठ की आर.एम.ओ.-40, आर.एम.ओ.-225, आर.एम.ओ.-257 व आर.एम.ओ.-435 किस्मों की बुवाई करें। मूंग तथा मोठ की उक्त किस्में 65 से 75 दिन में पक कर तैयार हो जाती हंै। इसी प्रकार ग्वार की मघ्यम अवधि (80 दिन) में पक कर तैयार होने वाली किस्मों यथा आर.जी.सी.-1003, आर.जी.सी.-1002 तथा कम अवधि की आर.जी.सी.-936 (पकाव अवधि 72 दिवस) का चयन किया जाये। तिल की फसल भी कम पानी में उत्पादन देने में सक्षम है। इसके लिए आर.टी.-125, आर.टी.-46 तथा आर.टी.-127 किस्में नागौर जिले के लिए उपयुक्त हैं। उन्होंने बताया कि देरी से बुवाई होने की दषा में बीज दर 15 से 20 प्रतिषत अधिक रखें तथा वर्षा आधारित बाजरे में बुवाई के बाद अधिक वर्षा अंतराल होने पर 10 प्रतिषत पौधे खेत से हटाकर समुचित पौध संख्या व दूरी निर्धारित करें, जिससे पौधों में पानी के लिए प्रतिस्पर्धा न हो सके। किसानों को यह भी सलाह दी जाती है कि बुवाई के लिए भलीभांति बीजोपचार भी करें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें