गुरुवार, सितंबर 02, 2010

बिश्रोई समाज ने पीपासर में मनाई जम्भेश्वर जन्माष्टमी

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन ही अवतार लिया था जाम्भोजी ने
नागौर 2 सितम्बर। जिले के ग्राम पीपासर में स्थित जम्भेश्वर साथरी पर बिश्रोई धर्म के संस्थापक एवं विष्णु के साक्षात अवतार भगवान जाम्भोजी का 560 वां जन्मोत्सव बिश्रोई समाज द्वारा हर्षोल्लास एवं धूमधाम के साथ मनाया गया। मुकाम पीठाधीश्वर आचार्य स्वामी रामानंदजी महाराज सहित समाज के अनेक महन्त, सन्त, विद्वान एवं वरिष्ठ नागरिकों सहित महिला बच्चों एवं बुजुर्गों ने हजारों की तादाद में उपस्थित होकर जन्मोत्सव की आरती में भाग लिया। बिश्रोई सेवक संस्थान श्रीबालाजी के नन्हे मुन्ने बालकों द्वारा जम्भेश्वर जन्मलीला का हिन्दी नाटक सजीव झांकियों के साथ मंचन किया गया। जम्भेश्वर जन्मस्थली सेवा समिति पीपासर के तत्वावधान में एवं आचार्य रामानन्दजी के सान्निध्य में जम्भेश्वर भगवान का 560 वां जन्मदिन गुरुवार 2 सितम्बर को धूमधाम से मनाया गया। समिति के अध्यक्ष अनोपचन्द बिश्रोई एवं पीपासर साथरी के महन्त स्वामी भक्तिस्वरूप ने बताया कि प्रतिवर्ष की भान्ति इस वर्ष भी श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में भाग लेकर जन्मोत्सव को सफल बनाया। जन्माष्टमी के दिन दोपहर में समिति का खुला अधिवेशन रखा गया। जिसमें समाज विकास,पर्यावरण संरक्षण, वन्यजीव संरक्षण एवं नशा निवारण विषयों पर भी खुलकर चर्चा हुई। शाम के समय जम्भेश्वर शब्दवाणी 120 का सस्वर पाठ सामूहिक रूप से किया गया। प्रसाद वितरण के बाद शाम 8बजे स्वामी स्वरूपानन्दजी महाराज ने ईश वन्दना के साथ सत्संग का शुभारम्भ किया। जाम्भोजी की आरती, जुमले की साखी एवं 29 नियमों की व्याख्या करने वाले भजन प्रस्तुत किए। आचार्य स्वामी रामानन्दजी महाराज ने अपने प्रवचन में जम्भेश्वर अवतार का कारण बताया और कहा कि भगवान जम्भेश्वर द्वारा सवा 85 वर्षों तक मानव मात्र के कल्याण की कई योजनाएं चलाई गई। उन्होनें मनुष्य मात्र को जीने का तरीका और मरणोपरान्त मोक्ष प्राप्ति का रास्ता बताने के लिए 29 नियमों की एक आचारसंहिता बनाई। जिसको धारण कर शिष्य बनने वाले बिश्रोई कहलाए। जाम्भोजी ने विक्रम सम्वत 1542 कार्तिक बदी अष्टमी से कार्तिक बदी अमावस्या तक एक सप्ताह का अभियान चलाकर सर्वप्रथम अपने ही चाचा पूल्होजी पंवार को चरणामृत (पाहल) देकर प्रथम शिष्य बनाया और बिश्रोई धर्म की स्थापना की। इस धर्म की स्थापना को 525 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। आचार्यश्री ने कहा कि आगामी 28,29 व 30 अक्तूबर को मुक्तिधाम मुकाम में धर्म स्थापना के 525 वर्ष पूर्ण होने पर रजत जयन्ती समारोह मनाया जाएगा। जिसमें समाज विकास पर विस्तार से चिन्तन किया जाएगा। आचार्यश्री ने उपस्थित जनसमूह को आह्वान किया कि वे भगवान जम्भेश्वर द्वारा बताए गए रास्ते पर चलकर अपना जीवन युक्तिपूर्वक जीएं। जीवमात्र का कल्याण करने वाली जाम्भोजी की वाणी का स्मरण, अध्ययन एवं पठन पाठन जारी रखें। उन्होनें नशों से दूर रहकर धार्मिक, सात्विक और आध्यात्मिक जीवन जीने का आह्वान किया। समराथल के महन्त स्वामी रामाकिशनजी महाराज तथा चन्द्रप्रकाशजी आश्रम समराथल के महन्त छगनप्रकाशजी महाराज, पीपासर साथरी के महन्त स्वामी भक्तिस्वरूपजी महाराज, स्वामी स्वरूपानन्दजी महाराज, स्वामी जुगतिप्रकाशजी महाराज ने प्रवचन दिए। सभी सन्तों ने कृष्ण जन्माष्टमी, जम्भेश्वर जन्माष्टमी का महत्व उजागर करते हुए अपने धर्म के प्रति श्रद्धा रखने, धर्म पर चलने और जन्मोत्सव में प्रतिवर्ष उपस्थित होकर अपने गुरु की सेवा करते रहने की प्रेरणा दी। रोटू के संगीत प्रेमी रिड़मलराम डूडी, वरिष्ठ धर्मप्रेमी रामनारायणजी डेलू काकड़ा, नोखा के भाजपा नेता बिहारीलाल बिश्रोई, समिति के अध्यक्ष एवं पंचायत समिति नागौर के सदस्य अनोपचन्द बिश्रोई, अखिल भारतीय जीवरक्षा बिश्रोई सभा के जिलाध्यक्ष रामरतन बिश्रोई, नागौर के तहसील अध्यक्ष पाबूराम ज्याणी, महामंत्री भंवरलाल गीला, जिला महासचिव महावीर सीगड़, जिला संगठन मंत्री मोहनराम तेतरवाल चावण्डिया, अखिल भारतीय बिश्रोई महासभा के कार्यालय सचिव हनुमानराम दिलोईया, शिवकरण डेलू काकड़ा, भगवानाराम डेलू रासीसर, रामजस धारणियां सांवतसर, हेतराम धारणियां सांवतसर, भानूसिंह बिश्रोई, फूसाराम अध्यापक चावण्डिया, बंशीलाल तेतरवाल, रामनिवास गीला अलाय, मोतीराम सियाग बनियां, धर्माराम जाणी रासीसर, मल्लूराम गोदारा रासीसर सहित अनेक लोगों ने व्यवस्थाओं में भाग लेकर आगन्तुकों की सेवा की। बिश्रोई सेवक संस्थान श्रीबालाजी के नन्हे मुन्ने 60 बालक बालिकाओं ने पूर्ण तैयारी के साथ उपस्थित होकर साहित्यकार रामरतन बिश्रोई द्वारा लिखित ''जम्भेश्वर जन्मलीलाÓÓ हिन्दी नाटक का आकर्षक ढ़ंग से मंचन किया। जिसको देखकर उपस्थित जनसमूह ने दांतो तले अंगुलियां दबाई। अनेक लोगों ने नगद पुरस्कार देकर बच्चों की हौसला अफजाई की। नाटक का संचालन साहित्यकार रामरतन बिश्रोई, महावीर बिश्रोई, हरदीनराम,श्रीराम गीला आदि की टीम ने किया। नाटक में जम्भेश्वर अवतार से पहले पीपासर में अकाल की स्थिति, ग्रामपति ठाकुर लोहटजी द्वारा पशुधन की रक्षा, पालन पोषण के लिए गोवळवास के रूप में छापर द्रोणपुर जाने, अचानक आंधी तुफान में पशुधन खो जाने, लोहटजी द्वारा पशुधन की खोज करने जाना, किसान द्वारा लोहटजी को नि:सन्तान का ताना देने, लोहटजी द्वारा वैराग्य के भाव से तपस्या करना, लोहटजी को विष्णु भगवान के योगीवेश में दर्शन होने, माता हंसादेवी को योगीबालक द्वारा वरदान देने, वरदान के अनुसार नौ माह बाद पीपासर में ग्रामपति ठाकुर लोहटजी एवं हंसादेवी के घर भगवान विष्णु का साक्षात चतुर्भुज रूप में प्रकट होकर बालक जम्भेश्वर के रूप में अवतार लेने तक की कथा का सजीव चित्रण किया गया। इस नाटक के मंचन ने 10 हजार से अधिक लोगों को रोमांचित कर दिया। बच्चों ने अपनी आकर्षक प्रस्तुति देकर डेढ़ घण्टे तक जोरदार वाहवाही लूटी। बच्चों ने सरगम पर आधारित भक्तिसंगीत व बधाई गीत भी नाटक के बीच में प्रस्तुत किए।नाटक के अन्त में ममता, पूजा, रविना, वर्षा, कोमल ने बधाई गीत की धुन पर सामूहिक नृत्य प्रस्तुत कर श्रोताओं केा मंत्रमुग्ध कर दिया। उसके बाद महिला कलाकार श्रीमती शान्तिदेवी सीगड़ निवासी सांवतसर ने बालक जम्भेश्वर के अवतार से सम्बन्धित सुन्दर भक्तिसंगीत '' माता हंसा पिता लोहट रो जम्भदेव है टाबरियो ÓÓ सरगम के साथ हारमोनियम व ऑरगन पर प्रस्तुत कर श्रोताओं से वाहवाही लूटी। चन्द्रोदय के पश्चात जम्भेश्वर जन्मोत्सव के समय स्वामी स्वरूपानन्दजी महाराज ने जन्मोत्सव की आरती प्रस्तुत की। आचार्य स्वामी रामानन्दजी महाराज, महन्त भक्तिस्वरूपजी महाराज, छगनप्रकाशजी महाराज, रामाकिशनजी महाराज सहित सभी उपस्थित सन्तों ने ताल, मृदंग, ढ़ोल, नगाड़ा, शंख, झालर व थाली बजाकर जन्म की खुशियां व्यक्त की तथा सामूहिक महाआरती की। जिसमें उपस्थित हजारों लोगों ने तालियां बजाकर व नाचगान करके जन्म की खुशियां मनाई। खुशी का प्रसाद वितरित किया गया। खुशी के प्रसाद में गुड़ व मिठाईयां वितरित की गई। आगन्तुक सन्तों को सम्मानित करने के साथ ही जन्मोत्सव का भव्य कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

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